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नमाज का सही तारिका फोटो के साथ

          इस्लामी शरीयत में तौहीद सबसे अहम है, फिर जिस्मानी इबादत में सबसे अहम इबादत नमाज है, उसके बाद माल में जकात, उसके बाद रोजा और फिर हज है।
लेकिन यहाॅ पर नमाज का सही (तारिका फोटो) के साथ बयान किया जा रहा है ।
नमाज अमल भी है और अकीदा भी। मोमिन की पहचान भी है और मेराज भी। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया कि हमारे और उन (काफिरों) के दर्मियान फर्क करने वाली सीमा रेखा नमाज़ है। यही कारण था कि काफिर कहे जाने के डर से मुनाफिक भी मस्जिदे नबवी में आ कर नमाजें पढ़ते थे। तो मेरे भाईयों हमें बेहतरीन तरीका मुहम्मद (स अ व)के नमाज अदा करने के तरीका को सामने रखकर नमाज अदा करनी चाहिए ।नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम फरमाते हैं :صلوا كما رأيتموني أصلي(अनुवाद : नमाज उसी तरह पढो जिस तरह मुझे पढते हुए देखते हो।बुखारी )
नमाज के तरीके बयान करने से पहले वज़ू के तरीके को शरियत के मुताबिक बयान करना मुनासिब समझते हैं ।
वज़ू से पहले की दुआ 
بسم اللہ (बिसमिल्लाह)xyz
वज़ू करने के तरीके
1) सब से पहले बिसमिल्लाह कहें ।(बिसमिल्लाह के बिना वज़ू नहीं होगी)
2) दोनों हाथों को पानी से रगड़ कर तीन मर्तबा धोएं।
3) तीन मर्तबा पानी से कुल्ला करें (खखार के साथ )(रोजे के हालत में खखार से गुरेज़ करें )
4) तीन मर्तबा पानी से नाक साफ करें ।
5) तीन मर्तबा पानी से अपने चेहरे को साफ करें ।
6) तीन मर्तबा पानी से अपने हाथों को कुहनी तक धोएं ।
7) एक मर्तबा सर का मसह करें (दोनों हाथों के उंगलियों के द्वारा सर के आगे हिस्से से पीछे की ओर ले जाएं और पीछे से आगे की ओर फेरे)
8) एक मर्तबा दोनों कानों में उंगलियों के द्वारा खिलाल करें । और कान बाहरी हिस्से पर अंगूठा फेरे ।
9) दोनों पैरों को टखनो से हल्का ऊपर तक तीन तीन मर्तबा बेहतरीन तरीके से धोएं ।
 वज़ू के बाद यह 👇दुआ पढें 
أشہدُ أن لا الٰہ الا اللّٰہ وحدہ لا شریک لہ ، وأشہدُ أن محمداً عبدہ و رسولہ,
अश-हदो अंल्लाएला-ह  इलाहा इल्लल्लाहो वह्दद्दू लाशरी-क लहू व अश-हदो अन-न मोहम्मदन अब्दोहू व-रसूलोहू(मुस्लिम 17 /234)
और साथ में यह 👇दुआ भी पढ़े
  سُبْحَانَكَ اللَّهُمَّ وَبِحَمْدِكَ، أَشْهَدُ أَنْ لا إِلَهَ إِلا أَنْتَ، أَسْتَغْفِرُكَ وَأَتُوبُ إِلَيْكَ
सुबहा - नकल्लाहुम-म व बेहम्दे-क अश-हदो अल्लाएला- ह इल्ला अन-त अस्तग़फ़ेरो-क व अतूबो एलैक।(मुस्तदरक हाकिम :1/564 ह  2072)
मस्जिद की तरफ जाने की दुआ
اَللّٰھُمَّ اجْعَلْ فِیْ قَلْبِیْ نُوْرًا، وَ فِیْ لِسَانِیْ نُوْرًا، وَاجْعَلْ فِیْ سَمْعِیْ نُوْرًا، وَاجْعَلْ فِیْ بَصَرِیْ نُوْرًا، وَاجْعَلْ مِنْ خَلْفِیْ وَ مِنْ اَمَامِیْ نُوْرًا، وَاجْعَلْ مِنْ فَوْقِیْ نُوْرًا، وَ مِنْ تَحْتِیْ نُوْرًا، اَللّٰھُمَّ اَعْطِنِیْ نُوْرًا۔
तर्जुमा -ऐ अल्लाह मेरे दिल में नूर भर दे और मेरी जबान में भी ,मेरे कानों में नूर डाल दे और मेरी आँखों में भी , मेरे पीछे भी नूर कर दे और आगे भी , मेरे ऊपर नूर कर दे और मेरे नीचे भी , ऐ अल्लाह मुझे नूर ही नूर अता फर्मा।मुस्लिम :ह  1799)
मस्जिद में दाखिल होने की दुआ
اَللَّهُمَّ! افْتَحْ لِیْ أَبْوَابَ رَحْمَتِکَ
तर्जुमा - अल्लाह मेरे लिए अपनी रहमत के दरवाजे खोल दे (मुस्लिम : सलातुल् मुसाफिरीन- ह   713)
नमाज के लिए सफों को सीधी करो
हज़रत इब्ने उमर रजि0 से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:
“सफों को सीधी करो, कन्धे बराबर करो (सफों के अन्दर ) उन स्थानों को पूरा करो जो ख़ाली रह जायें ? अपने भाइयों के हाथों में नर्म हो जाओ, सफों के अन्दर शैतान के लिये स्थान न छोड़ो, और जो शख्स सफ मिलायेगा, अल्लाह भी उसे ( अपनी रहमत से ) मिलाएगा।(अबु दावूद : ह  665)

तकबीरे तहरीमा से सलाम तक

(1) रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम जब नमाज़ के लिए खड़े होते तो किब्ला (काबा) की तरफ रुख करते, रफ्उल यदैन करते और फ़रमातेः "अल्लाहु अकबर" (तिर्मिज़ी : 304)
और फ़रमातेः जब तुम नमाज़ के लिए खड़े हो तो तकबीर कहो ।  (बुखारी : 757 , मुस्लिम : 45/ 397)
(2) आप सल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने दोनों हाथ कन्धों तक उठाते थे।(बुखारी : 736 , मुस्लिम : 390)
यह भी साबित है कि आप सल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने दोनों हाथ कानों तक उठाते थे।(मुस्लिम : 25, 26/391)
(3) आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम (उंगलियां) फैलाकर रफा यदैन करते थे। (अबु दावूद : 753 और इसकी सनद सहीह है और इसको इब्ने खुज़ैमा ने भी सहीह करार दिया है: 459 और इब्ने हिब्बान ने भी, अल एहसान: 1774 और हाकिम: 1/234 और ज़हबी ने इसकी मुवाफ़िक़त की है। )
(4) आप सल्लाहु अलैहि वसल्लम अपना दायां हाथ अपने बाएं हाथ पर, सीने पर रखते थे। (अहमद ने अपनी मुसनद में 5/226 ह 22313 और इसकी सनद हसन है, और ऐसा ही इब्ने जौज़ी की तहकीक में है: 1/283ह 477 दूसरा नुसखाः 1/338ह 434)

 
(5) रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम तकबीर (तहरीमा) और क्रिअत के दरमियान निम्न दुआ (सिर्रन यानी बग़ैर आवाज़ के) पढ़ते थे:
اللَّهُمَّ بَاعِدْ بَيْنِي وَبَيْنَ خَطَايَايَ كَمَا بَاعَدْتَ بَيْنَ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ اللَّهُمَّ نَقِّنِي مِنْ الْخَطَايَا كَمَا يُنَقَّى الثَّوْبُ الْأَبْيَضُ مِنْ ‏ ‏الدَّنَسِ ‏ ‏اللَّهُمَّ اغْسِلْ خَطَايَايَ بِالْمَاءِ وَالثَّلْجِ وَالْبَرَدِ
तर्जुमा - “ऐ अल्लाह ! मेरे और मेरे गुनाहों के दर्मियान दूरी डाल दे जैसे तूने पूरब और पश्चिम के दर्मियान दूरी रखी है। ऐ अल्लाह ! मुझे गुनाहों से इस तरह पाक कर जैसा कि सफ़ेद कपड़ा मैल से पाक किया जाता है। ऐ अल्लाह ! मेरे गुनाह (अपनी बख्शिश के) पानी, बर्फ और ओलों से धो डाल । "
(बुखारी :  ह  744, मुस्लिम : ह  598)
 दर्जे ज़ेल दुआ भी आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम से साबित है:
سُبْحَانَكَ اللَّهُمَّ وَبِحَمْدِكَ وَتَبَارَكَ اسْمُكَ وَتَعَالَى جَدُّكَ وَلَا إِلَهَ غَيْرُكَ
तर्जुमा “ऐ अल्लाह तू पाक है (हम) तेरी तारीफ़ के साथ (तेरी पाकी बयान करते हैं) तेरा नाम ( बड़ा ही ) बर्कत वाला है, तेरी बुजुर्गी बुलन्द है, तेरे सिवा कोई माबूद नहीं। "(तिर्मिज़ी किताबुस्सलात, हदीस न0 243+अबू दावूद, हदीस न० - 775, 776, इब्ने माजा- हदीस न0 806, इमाम हाकिम और ज़हबी ने इसे सहीह कहा है।)
 साबित शुदा दुआओं में से जो दुआ भी पढ़ ली जाएं, बेहतर है।  
(6) इस के बाद रसूलुल्लाह सल्ललाह अलैहि वसल्लम दर्जे ज़ेल दुआ पढ़ते थे:

اَعُوذُ بِاللهِ السَّمِيعِ الْعَلِيمِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ مِنْ هَمْزه ونفخہ ونَفثہ.
“अल्लाह की पनाह मांगता हूं जो (हर आवाज़ को ) सुनने वाला (और हर वस्तु को) जानने वाला है, मर्दूद ( अबू दाऊदः 775 इसकी सनद हसन है।)
(7) आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيمِपढ़ते थे।  (नसाई: 906. इसकी सनद सहीह है, और इबने खुज़ैमा ने भी इसे सहीह कहा है: 499 और इब्ने हिब्बान ने भी अल एहसानः 1794, और हाकिम ने शैख़ैन के शर्त परः 1/232 और ज़हबी ने इसकी मुवाफ़िक़त की है। तंबीहः इस रिवायत के रावी सईद बिन अबी बिलाल ने यह हदीस इखतिलात से पहले बयान की है, खालिद बिन यज़ीद की सईद बिन अबी बिलाल से रिवायत सहीह बुखारी 136 और सहीह मुस्लिम 42/1877 में मौजूद है।)
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيمِ जहरन (आवाज़ के साथ) पढ़ना भी सहीह है और सिर्रन (बगैर आवाज़) भी सहीह है, कसरते दलाइल की रू से आम तौर पर सिर्रन पढ़ना बेहतर है। (जहरन के जवाज़ के लिए देखिए नसाई: 906 और इसकी सनद सहीह है. सिर्रन के जवाज़ के लिए देखिए सहीह इब्ने खुज़ैमाः 495 और इसकी सनद हसन है, सहीह इब्ने हिब्बान, अल एहसानः 1796 और इसकी सनद सहीह है।)                                                      (8) फिर आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम सूरा फातिहा पढ़ते थे। 
اَلْحَمْدُ لِلهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ ۔الرَّحْمٰنِ الرَّحِيمِ ۔مَلِكِ يَوْمِ الدِّين ۔إيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ۔ اهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيمَ ۔صِرَاط الَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ ۔غَيْرِ ۔الْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا الضَّا الَّذِينَ. “अल्लाह के नाम से (आरंभ करता हूं) जो निहायत रहम करने वाला बड़ा मेहरबान है। सारी तारीफ अल्लाह के लिये है जो तमाम मख़्लूक का पालनहार है, बेहद रहम करने वाला, बेहद मेहरबान है, बदले के दिन का मालिक है (ऐ अल्लाह !) हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझी से सहायता मांगते हैं हमें सीधी राह पर चला, उन लोगों की राह पर जिन ........ ..
 (फातिहा : 1 / 1-7) 
       सूरा फातिहा आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ठहर ठहर कर पढ़ते और हर आयत पर वक़्फ़ करते थे ) आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते :
لا صَلوةَ لِمَنْ لَّمْ يَقْرَأَ بِفَاتِحَةِ الْكِتَابِ .
 जो शख्स सूरा फातिहा न पढ़े उसकी नमाज़ नहीं होती  (बुखारी : 756)
(9) फिर आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम आमीन कहते थे। (नसाईः 906, इसकी सनद सहीह है, और देखिए फिक्राः 7 हाशिया: 3 )
सय्यदना वाइल बिन हुज्र रज़ि० से रिवायत है कि उन्होंने रसूलुल्लाह सल्ललाहु अलैहि वसल्लम के साथ नमाज़ पढ़ी, आप ने अपना दायां हाथ बाएं हाथ पर रखा, फिर जब आप ने ولا الظَالین (जोर से आवाज के साथ ) कही तो आमीन (जोर से आवाज के साथ) कही।    (इब्ने हिब्बान अल एहसानः 1802 और इसकी सनद सहीह है। )      
 (10) फिर आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम सूरत-से पहले بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيمِ पढ़ते थे।उस के बाद कोई सुरा पढ़ते थे  ।(मुस्लिम : 53/400)
 नोट : -    नबी सल्ललाहु अलैहि वसल्लम पहली दो रकअतों में फ़ातिहा और कोई एक सूरत पढ़ते थे।  और आखिरी दो रकअतों में (सिर्फ) सूरा फातिहा पढ़ते थे
(11) फिर आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम रुकू के लिए तकबीर (अल्लाहु अकबर) कहते। बुखारी: (789, मुस्लिमः 28/392)
(12) आप सल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने दोनों हाथ कंधों तक उठाते थे । आप (रुकू से पहले व रुकू के बाद) रफा यदैन करते फिर (उसके बाद) तकबीर कहते। बुखारी: (738, मुस्लिमः 22/390 )

(13) आप सल्ललाह अलैहि वसल्लम जब रुकू करते तो अपने हाथों से अपने घुटने मजबूती से पकड़ते फिर अपनी कमर झुकाते (और बराबर करते) ।

  
(15) आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम रुकू में:سُبحان ربِّي العظيمِ कहते (पढ़ते थे। (मुस्लिम : 772)
17) जब आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम रुकू से सर उठाते तो रफा यदैन करते और
سمع الله لمن حمده، ربنا لك الحمد،
 कहते थे। (बुखारी :  735)
(18) फिर आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम तकबीर (अल्लाहु अकबर) कह कर (या कहते हुए) सज्दे के लिए झुकते(बुखारी :  803)

 (19) आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमायाः
إِذَا سَجَدَ أَحَدُكُمْ فَلا يَبُرُكَ كَمَا يَبْرُكَ الْبَعِيرُ وَلْيَضع يَدَيْهِ قَبْلَ رُكْبَتَيْهِ जब तुम में से कोई सज्दा करे तो ऊंट की तरह न बैठे (बल्कि) अपने दोनों हाथ अपने घुटनों से पहले (ज़मीन पर) रखे, आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम का अमल भी इसी के मुताबिक ( अबु दावूद :  840)

(2) आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम फरमाते थे कि "सज्दे में एतेदाल करो, कुत्ते की तरह बाजू न बिछाओं" । (बुखारी :  822)


(3) आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते थे: "मुझे सात हड्डियों पर सज्दा करने का हुक्म दिया गया है, पेशानी, नाक, दोनों हाथ, दोनों घुटने और दोनों क़दमों के पंजे" । (बुखारी :  812, मुस्लिम :  490)
(4) आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाते थे कि "जब बन्दा सज्दा करता है तो सात अतराफ (आजा) उसके साथ सज्दा करते हैं, चेहरा, दो हथेलियां, दो घुटने और दो पांव ।( मुस्लिम :  491)
मालूम हुआ कि सज्दे में नाक, पेशानी, दोनों हथेलियों, दोनों घुटनों और दोनों पांव का ज़मीन पर लगाना जरूरी (फ़र्ज़) है। एक रिवायत में है: “لا صلوۃ لمن لم یضع أنفہ علی الأرض जो शख्स (नमाज़ में) अपनी नाक, ज़मीन पर न रखे उसकी नमाज़ नहीं होती । ( दारे कतनी ने अपने सुनन में 1/348 ह 1303 इसको मरफू और इसकी सनद को हसन कहा है। ) 
(5) आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम जब सज्दा करते तो अगर बकरी का बच्चा आप के बाजुओं के दरमियान से गुज़रना चाहता तो गुज़र सकता था। (मुस्लिम :  496)
(20) सज्दे में यह दुआ पढ़ना साबित है।سبحان ربی الاعلی  (मुस्लिम :  772)
(21) आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम सज्दे की हालत में अपने दोनों पांव की एड़ियां मिला देते थे और उनका रुख किबले की तरफ़ होता था।(बैहकी:  2/116) सज्दे में आप अपने दोनों कदम खड़े रखते थे।( (मुस्लिम :  486, नववी की शरह के साथ)
(22) आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम तकबीर (अल्लाहु अकबर) कह कर सज्दे से उठते । (बुखारी :  789)
आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम अल्लाहु अकबर कह कर सज्दे से सर उठाते और अपना बायां पांव बिछा कर उस पर बैठ जाते। (अबु दावूद : 730 , और इसकी सनद सहीह है ।)
आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम सज्दे से सर उठाते वक़्त रफा यदैन नहीं करते थे (बुखारी 738, मुस्लिमः 22/390) सय्यदना अब्दुल्लाह बिन उमर रजि० फ़रमाते हैं: नमाज़ में (नबी सल्ललाहु
अलैहि वसल्लम की) सुन्नत यह है कि दायां पांव खड़ा करके बायां पांव बिछा दिया जाए। (बुखारी :  827)
(23) आप सल्लाहु अलैहि वसल्लम सज्दे से उठ कर (जलसे में) थोड़ी देर बैठे रहते । (बुखारी :  818)
हत्ता कि बाज़ कहने वाला कह देता कि "आप भूल गए है"। (बुखारी :  821, मुस्लिम :  472)
(30) आप दोनों सज्दों दरमियान (जलसे) में यह दुआ पढ़ते थेः
رَبِّ اغْفِرْ لِي  (अबु दावूद :  874)
(31) फिर आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम (अल्लाहु अकबर) कह कर (दूसरा) सज्दा करते । (बुखारी : 789 , मुस्लिमः 28 / 392 ) 
(32) दूसरी रक्अत में दूसरे सज्दे के बाद (तशहहुद के लिए) बैठ जाने के बाद आप सल्ललाहु अलैहि व सल्लम अपना दायां हाथ दाएं घुटने पर और बायां हाथ बाएं घुटने पर रखते थें। (मुस्लिम :  112 / 579) आप सल्ललाहु अलैहि व सल्लम अपने दाएं हाथ की उंगलियों से तरेप्पन का अदद (हलका) बनाते और शहादत की उंगली से इशारा करते थे। (मुस्लिम :  115/ 580)
(33) दूसरे सज्दे से आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम जब उठते तो बायां पांव बिछा कर उस पर बैठ जाते हत्ता कि हर हड्डी अपनी जगह पर आ जाती । (अबु दावूद :  730)

(34) आप सल्ललाहु अलैहि व सल्लम अपनी दाएं कोहनी को दाएं रान पर रखते थे।  आप सल्ललाहु अलैहि व सल्लम अपनी दोनों ज़राएं  अपनी रानों पर रखते थे । (अबु दावूद :  726, 957) इ     
(35) आप सल्ललाहु अलैहि व सल्लम जब तशहहुद के लिए बैठते तो शहादत की उंगली से इशारा करते थे । (मुस्लिम :  115/ 580)
आप सल्ललाहु अलैहि व सल्लम उंगली उठा देते, उस के साथ तशहहुद में दुआ करते थे। (इब्ने माजा :  912, और इसकी सनद सहीह है ।)
आप सल्ललाहु अलैहि व सल्लम शहादत वाली उंगली को थोड़ा सा झुका देते थे। (अबु दावूद :  991)
आप सल्ललाहु अलैहि व सल्लम अपनी शहादत वाली उंगली को हरकत देते (हिलाते) रहते थे।   (नसाईः 1269)   
 (36) आप सल्ललाहु अलैहि व सल्लम अपनी शहादत वाली उंगली को किब्ला रुख करते और उसी की तरफ देखते रहते थे। (नसाईः 1161) आप सल्ललाहु अलैहि व सल्लम दो रकअतों के बाद वाले (पहले) तशहहुद, और चार रकअतों के बाद वाले (आखिरी) तशहहुद, दोनों तशहहुदों में यह इशारा करते थे। (नसाईः 1162)
 (37) आप सल्ललाहु अलैहि व सल्लम तशहहुद में दर्जे जैल- दुआ (अत्तहियात) सिखाते थे:                            التَّحِيَّاتُ لِلَّهِ وَالصَّلَوَاتُ وَالطَّيِّبَاتُ السَّلَامُ عَلَيْكَ أَيُّهَا النَّبِيُّ وَرَحْمَةُ اللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ السَّلَامُ عَلَيْنَا وَعَلَى عِبَادِ اللَّهِ      (बुखारी :  1202)       الصَّالِحِينَ، أَشْهَدُ أَنْ لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ
(38) फिर आप सल्ललाहु अलैहि वसल्लम दुरूद पढ़ने का हुक्म देते थे:
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ إِنَّكَ حَمِيدٌ مَّجِيدٌ، اللّهُمَّ بَارِكْ عَلَى مُحَمَّدٍ   وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا بَارَكْتَ عَلَى إِبْراهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ أَنَّكَ حَمِيدٌ مَّجِيدٌ   (बुखारी :  3370) 
(39) दो रकअतें मुकम्मल हो गई, अब अगर दो रकअतों वाली नमाज़ (मसलन सलातुल फ़जर) है। तो दुआ पढ़ कर दोनों तरफ सलाम फेर दें और अगर तीन या चार रकअतों वाली नमाज़ है तो तकबीर कह कर खड़े हो जाएं।     
(40) चौथी रकअत भी तीसरी रकअत की तरह पढ़े। आप सल्ललाहु अलैहि व सल्लम चौथी रकअत में तवर्रक करते थे (सहीहुल बुखारी: 828) तवर्रुक का मतलब यह है कि " नमाज़ी अपने बायां पैर को दाएं तरफ बढ़ा दे और कुल्हे पर बैठ जाएं , और उंगलियों का रुख किबला की तरफ हो,  (अल कामूसुल बहीद 1841 नीज़ देखिए फिका 49) नमाज़ की आखिरी रकअत के तशहहुद में तवर्रुक करना चाहिए सुनन अबी दाऊद (730 और इसकी सनद सहीह है)
चौथी रकअत मुकम्मल करने के बाद अत्तहियात और दुरूद पढ़े।
 (41) फिर उसके बाद जो दुआ पसन्द हो (अरबी ज़बान में) पढ़ ले।                                                                      اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُبِكَ مِنْ عَذَابِ الْقَبْرِ وَاَعُوذُبِكَ مِنْ فِتْنَةِ الْمَسِيحِ الدَّجَالِ وَأَعُوذُبِكَ مِنْ فِتْنَةِ الْمَحْيَا وَفِتْنَةِ الْمَمَاتِ اللَّهُمَّ اَعُوذُبِكَ مِنَ الْمَأْثَمِ وَالْمَغْرَمِ  (बुखारी :  832 , मुस्लिम : 589)

اللَّهُمَّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي ظُلْمًا كَثِيرًا وَلا يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلَّا اَنْتَ فَاغْفِرْلِى مَغْفِرَةً مِّنْ عِنْدِكَ وَرَاحَمُنِي إِنَّكَ أَنْتَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ  (बुखारी :  834, मुस्लिम :  2705)                                                                                     सलाम के बाद की दुआएं
(1)  اللهُ أَكْبَرُ  अल्लाह सबसे महान है  (बुखारी :  284) 
(2)  اَسْتَغْفِرُ اللهَ، أَسْتَغْفِرُ اللهَ، أَسْتَغْفِرُ اللهَ  मैं अल्लाह से क्षमा मांगता हूं  मैं अल्लाह से क्षमा मांगता हूं  मैं अल्लाह से क्षमा मांगता हूं
(3)  اللَّهُمَّ أَنْتَ السَّلَامُ وَمِنْكَ السَّلَامُ تَبَارَكْتَ يَاذَا الْجَلَالِ وَالْإِكْرَامِ .
“या इलाही! तू “अस्सलाम" है और तेरी ही तरफ सलामती है। ऐ जलाल और इकराम वाले! तू बड़ा ही बर्कत वाला है। "(मुस्लिम :  591)
(4)  لا إله إلا اللهُ وَحْدَهُ لا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ، وَهُوَ عَلى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ ، اللهُمَّ لاَ مَانِعَ لِمَا أَعْطَيْتَ، وَلَا مُعْطِىَ لِمَا مَنَعْتَ، وَلَا يَنْفَعُ ذَا الْجَدَّ مِنْكَ الْجَدُّ
“अल्लाह के सिवा कोई (सच्चा) माबूद नहीं है, वह अकेला है, उस का कोई साझी नहीं है, उसी के लिये बादशाहत है और उसी के लिये तमाम तारीफ है, और वह हर वस्तु पर कुदरत रखने वाला है। ऐ अल्लाह ! तेरी अता को कोई रोकने वाला नहीं, और तेरी रोकी हुयी चीज़ को कोई देने वाला नहीं । और नहीं फायदा दे सकती किसी हैसियत वाले को । तेरे यहां उसकी हैसियत । (बुखारी :  844)
(5)  لا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ ولهُ الحَمْدُ، وَهُوَ عَلى كُلّ شَیء قَدِيرٌ، لَا حَوْلَ وَلا قُوَّةَ إِلا بالله، لا إله إلا الله ولا نعبد إلا إِيَّاهُ، لَهُ النِّعْمَةُ وَلَهُ الْفَضْلُ وَلَهُ الثَّنَاءُ الْحَسَن، لا إله الا الله مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّيْنَ، وَلَوْ كَرِهَ الْكَافِرُونَ
 “अल्लाह के अलावा कोई सच्चा माबूद नहीं, वह अकेला है उस का कोई शरीक नहीं, उसी के लिये बादशाहत है और उसी के लिये सारी तारीफ है और वह हर वस्तु पर कुदरत रखने वाला है। गुनाहों से रुकना और इबादत पर इखितयार पाना केवल अल्लाह की तौफ़ीक़ से है। अल्लाह के सिवा कोई सच्चा माबूद नहीं, और हम (केवल) उसी की इबादत करते हैं। हर नेमत का मालिक वही है और तमाम फ़ज़्ल उसी की मिलकियत है। (यानी फ़ज़्ल और नेमतें केवल उसी की तरफ से है।) उसी के लिये अच्छी तारीफ़ है। अल्लाह के सिवा कोई (हकीकी) माबूद नहीं, हम (केवल) उसी की उपासना करते हैं अगरचे काफ़िर बुरा मानें। " (मुस्लिम :  ह 1343 )
(6)  (33)  बार سُبْحَانَ اللهِ पढ़े    
       (33)  बार  الْحَمْدُ ِللهِ  पढ़े    
    (33)     बार  اللهُ اکبر   पढ़े                                            और आखिरी दफा निम्न दुआ पढ़ कर 100 की गिनती मुकम्मल करें ।
لَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ اَلْحَمْدُ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرِ   अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, बस उसी का कोई शरीक नहीं, बादशाहत उसी की है और तारीफ़ भी उसी की है, और वह हर चीज़ पर कादिर है   ( मुस्लिम :  597)
  (7) हज़रत उक़बा बिन आमिर रज़ि० रिवायत करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें हुक्म दिया हर (फ़र्ज़) नमाज़ के बाद “मु- अव्वजात" पढ़ा करूं। 
“मु- अव्वजात” (यानी अल्लाह की पनाह में देनी वाली सूरतें) यह उन सूरतों को कहते हैं जिनके शुरू में “कुल् अऊजु” का शब्द है। इन सूरतों को “मु- अव्व- ज़तैन” भी कहा जाता है। यानी कुरआन पाक की अन्तिम दो सूरतें जो निम्न हैं: ( अबु दावूद :   ह :1523)
(8) 
اَللّٰهُ لَاۤ اِلٰهَ اِلَّا هُوَۚ-اَلْحَیُّ الْقَیُّوْمُ ﳛ لَا تَاْخُذُهٗ سِنَةٌ وَّ لَا نَوْمٌؕ-لَهٗ مَا فِی السَّمٰوٰتِ وَ مَا فِی الْاَرْضِؕ-مَنْ ذَا الَّذِیْ یَشْفَعُ عِنْدَهٗۤ اِلَّا بِاِذْنِهٖؕ-یَعْلَمُ مَا بَیْنَ اَیْدِیْهِمْ وَ مَا خَلْفَهُمْۚ-وَ لَا یُحِیْطُوْنَ بِشَیْءٍ مِّنْ عِلْمِهٖۤ اِلَّا بِمَا شَآءَۚ-وَسِعَ كُرْسِیُّهُ السَّمٰوٰتِ وَ الْاَرْضَۚ-وَ لَا یَـُٔوْدُهٗ حِفْظُهُمَاۚ-وَ هُوَ الْعَلِیُّ الْعَظِیْمُ
तर्जुमा - “अल्लाह के अलावा कोई (सच्चा) माबूद नहीं, वह जीवित है, हमेशा काइम रहने वाला है। न वह ऊघंता है न सोता है, उसी का है जो कुछ आसमानों और ज़मीन में है, उस की अनुमति के बिना कौन उस के पास ( किसी की) सिफारिश कर सकता है? वह जानता है जो कुछ उन से पहले गुज़रा और जो कुछ उन के बाद होगा, और लोग उस के फ़िल्म में से किसी भी चीज़ का एहाता नहीं (बकरा 2/200)
(9) اللَّهُمَّ أَعِنِّى عَلى ذِكْرِكَ وَشُكْرِكَ وَحُسْنِ عِبَادَتِكَऐ मेरे अल्लाह ! जिक्र करने, शुक्र करने और अच्छी इबादत करने में मेरी सहायता कर।   ( अबु दावूद : ह :1522 )   
मस्जिद से निकलने की दुआ
اللَّهُمَّ إنِّي أَسْأَلُك مِنْ فَضْلِكَ  तर्जुमा - ऐ अल्लाह मैं सवाल करता हूं तुझ से तेरे फज़्ल का (मुस्लिम :  713)                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                     


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